*36 वॉ सालाना उर्स पाक पर हजरत अल्लामा मौलाना शाह मोहम्मद इलियास अली कादरी, चिश्ती, कलंदरी, कंबलपोशी,मसऊदी अलैहिरहमा। की हयात पर एक नज़र।*


शहरे बिलासपुर की मरकजी मस्जिद “गोल बाजार की मदीना मस्जिद”है जहां पर सन 1950 ईस्वी मे एक सादात घराने का सादगी से लबरेज़ अपनी खानदानी वकार और अज़मत लिए हुए एक इमाम साहब की आमद होती है जिन्हें अवाम मौलाना इलियास के नाम से जानती है अवाम को ये नहीं मालूम कि ये सीधे- साधे दिखने वाले सादगी पसंद इमाम साहब एक दिन हमारे बिलासपुर की पहचान बनने वाले हैं इस मरकजी मदीना मस्जिद को हमेशा इनके नाम से जाना जाएगा। आपने 55 रुपए के वजीफे मे इमामत की शुरुआत की। फिर 300 रुपए फिर आखिर वक्त में 500 रुपए तक आपका वजीफा था। आपने 38 साल तक इमामत की। और मदीना मस्जिद में इमामत के मुसल्ले को आबाद किया।आज भी इस मस्जिद में नमाज़ अदा करने पर एक अलग सुकून महसूस होता है।
मौलाना इलियास अली अलैहिरहमा की विलादत सन 1913 ईस्वी ब मुताबिक 1332 हिज़री में चंदौसी जिला मुरादाबाद यूपी में हुई। आपका परिवार रामपुर यूपी में आकर बस गए। आपका नसब(शिजरा )नामा इस तरह है।
1-हजरत हाफिज व कारी मौलाना अश्शाह मोहम्मद जाफर रज़ा अलैहिर्रहमा जलालाबादी (अफगानिस्तान)।
2-हजरत अल्लामा मौलाना अशशाह मोहम्मद रज़ा अलैहिरहमा अफ़गानी सुम्मा चंदौसी सुम्मा रामपुरी।
3-हजरत अल्लामा मौलाना अशशाह मोहम्मद इलियास अली कादरी चिश्ती कलंदरी कंबलपोशी मसऊदी अलैहिर्रहमा चंदौसी सुम्मा रामपुरी -बिलासपुरी
आप एक आलिमे रब्बानी, आरिफ़ बिल्लाह वलिए कामिल थे आपकी खिताबत का अंदाज़ भी अलग था। आप कौम में एक अपनी अलग शान रखते थे। निहायत ही खुश अख्लाक, साहिबे हिक्मत, साहिबे फिरासत,साहिबे करामत ,आशिके रसूल, मुबल्लिगे इस्लाम, और रूहानी पेशवा थे। अल्लाह ने आपको बेशुमार खुबियों का हामिल बनाया था। इल्म, बुर्दबारी, आजेजी इंकिसारी, अमानत की पासदारी, हक गोई, बेबाकी, इख्लास, खुद आगाही , हमदर्दी, गौरो फिक्र, सब्र ये सब आपके अंदर मौजूद थी। आपकी रूहानियत की वजह से मदीना मस्जिद में कई जै़य्यद आलिमे दीन ने शहरे बिलासपुर व अतराफ के अपने तकरीरी दौरा के दौरान नमाज़े पढ़ाई है।
जिस शख्स ने भी आपसे मुलाकात का शर्फ हासिल किया है या जिसे आपकी सोहबत मिली, या जो आपके शागिर्दे ए ख़ास रहे। सबको ऐसा लगता
था कि हजरत का मुझ पर ख़ास करम रहा है। कौन अपने कौन बेगाने किसी में फ़र्क नहीं। सभी से मिलने का अंदाज़ भी वही रहता गुफ्तगु भी वैसे ही फरमाते थे लोग आपके गिरविदा हो जाते थे। ये आपकी अख्लाकी किरदार था। आपको तकरीबन 23 मर्तबा हालते ख्वाब के आलम में हुजुर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की जियारत हुई।
आप सदरूल अफाजिल अल्लामा सैय्यद नईमुद्दीन अशरफी मुरादाबादी अलैहिर्रमा के शागिर्द मोहद्दिस सहसरामी हजरत मौलाना सैय्यद मोहम्मद वसी अहमद मसउद, कादरी चिश्ती अलैहिरहमा के मुरीदे ख़ास व खलीफा थे।
मौलाना इलियास अली अलैहिर्रहमा को हुजूर मुस्तफा रज़ा (मुफ्ती ए आज़म हिन्द) अलैहिर्रमा से ख़ास लगाव था आपके गहरे ताल्लुकात थे। आपके ही दावत पर हुजूर मुफ्ती ए आज़म हिंद तीन बार बिलासपुर तशरीफ़ लाए थे। खुद मुफ्ती ए आज़म हिंद ने आपके बारे में फरमाया था कि आपकी जा़त बज़ाते खुद एक सनद है। आपकी दुवाओं में बड़ी तासीर थी। आप उलेमा की जमातों की बड़ी इज़्जत फरमाते। एक तारीखी हकीकत ये भी है कि आज शहरों में और एतराफ में बेशुमार मस्जिद आबाद है मगर आप जैसा कोई इमाम इस मंसब पर फायज नहीं हो सका। और ना कहीं देखा गया ना सुना गया।
आप अपने हयाते जाहरी में इल्म रूहानी को आम किया। मगर अपने बाद अपने इस अंजुमन को कायम रखने के लिए आपने अपना खुल्फा बनाकर उनको ये जिम्मेदारी दी और हिदायत दी कि नबी की विरासत के ये मिशन को आम करना है। आपके खुल्फ़ा में आपके खल्फ ए अकबर मौलाना 1- मोहम्मद मियां साहब तखतपुर, 2- हाजी सैय्यद निसार अली साहब, 3- हाजी नबुवत खान साहब जुनवानी (मल्हार), 4- मोलवी जुमअन शाह साहब, 5- मौलाना अल्हाज मोहम्मद रोजे खान साहब तैयबा चौक बिलासपुर (रानीगाँव), 6- मौलाना तुफैल अहमद रिज़वी साहब, 7- सूफ़ी अजीजुद्दीन साहब बिलासपुर। शामिल हैं।
आपके 7 साहबजादे और 3 साहबजादियां थी। जिनमें से 6 साहबजादे और 2 साहब्जादियां अभी हयात हैं।
शहरे बिलासपुर की ये रूहानी पेशवा और अज़ीम शख्सियत 2 नवंबर 1988 ईस्वी बमुताबिक 21 रबीउल अव्वल 1409 हिजरी को अपने मालिके हकीकी से जा मिले। इनकी नमाजे जनाजा हुजूर अमीने शरीयत अल्लामा सिब्तैन रजा खां अलैहिर्रमा ने पढ़ाई थी। आपके जनाजे में जो लोगों का इस कदर हुजूम था। कि आजतक ऐसे किसी के जनाजे में देखने को नहीं मिल सका।आपको शहरे बिलासपुर की मरकजी कब्रिस्तान में दफ़न किया गया है। जहां पर आपका शानदार रौजा बना हुआ है जिसे आजकल रहमत बाग ख़ामोश गंज कहा जाता है जो तालापारा -मक्का मस्जिद- बिलासपुर के पास है। हर साल आपका उर्स 21 रबीउल अव्वल शरीफ को शरीयत के मुताबिक मनाया जाता है। आस्ताना ए मुबारक के पास बाद नमाजे फजर कुरान ख्वानी,नात ख्वानी, चादर पोशी, फातिहा ख्वानी, होती हैं और मदीना मस्जिद गोल बाजार में बाद नमाज़ मगरीब महफिल जिक्र व तकरीर होती है और बाद नमाज़ ईशा लंगर का एहतमाम रहता है। इस साल ये 37 वां उर्स पाक की तकरीबात 25 सितंबर ब मुताबिक दिन बुधवार को होगी।

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