*किसी तरह इंद्रावती नेशनल पार्क पहुंचे तो यहीं के होकर रह सकते हैं भटकते हाथी*

*किसी तरह इंद्रावती नेशनल पार्क पहुंचे तो यहीं के होकर रह सकते हैं भटकते हाथी*

जगदलपुर। इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान का बहुत बड़ा इलाका तीन तरफ से इंद्रावती नदी से घिरा हुआ है और दो हजार सात सौ निनांबे वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस भू- भाग में पानी के साथ चारे की पर्याप्त व्यवस्था है। बस्तर के वरिष्ठ वन अधिकारियों तथा वन्यप्राणी जानकारों का मानना है कि सरगुजा से रायगढ़, महासमुंद, गंगरेल बांध (धमतरी) होकर कांकेर जिला के जेपरा बस्ती के भैसाबांधा तक पहुंच चुके जंगली हाथी भटकते हुए किसी तरह इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में पहुंच जाएं तो अपने अनुकूल परिस्थितियां पाकर यहीं के होकर रह सकते हैं।
छत्तीसगढ़ में गज और मानव द्वंद लगातार जारी है। सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं विभिन्न घटनाओं में पचास से ज्यादा हाथियों की मौत हो चुकी है। सरगुजा के हाथी रायगढ़, बिलासपुर, महासमुंद, राजनांदगांव, कवर्धा, धमतरी के बाद कांकेर जिला के नरहरपुर ब्लाक अन्तर्गत जेपरा तक पहुंच ग्रामीणों के घर तोड़ फोड कर चुके हैं। छग राज्य वन्यप्राणी बोर्ड के सदस्य हेमंत कश्यप, बस्तर प्रकृति बचाओ समिति के अध्यक्ष दशरथ कश्यप, पर्यावरणीय संस्था लीफ के प्रमुख अधिवक्ता अर्जुन नाग का मानना है कि विगत तीस वर्षों से सुरक्षित आवास तथा चारा के लिए भटक रहे ये जंगली हाथी किसी तरह नारायणपुर होते हुए इंद्रावती पार कर राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में पहुंच जाएं तो यहीं के होकर रह जाएंगे। इस भू- भाग में पर्याप्त पानी और चारा है। इन्होंने बताता कि बड़ा शरीर होने के कारण हाथियों को बहुत अधिक आहार की जरूरत पड़ती है। प्रतिदिन 100 किलो या उससे भी अधिक हरा चारा उनकी आवश्यकता है। खाने के अलावा हाथियों को पानी की भी बड़ी आवश्यकता रहती है। पानी इन्हें इतना पसंद है कि दिन में एक या दो बार नदी या जलाशयों तक अवश्य आते हैं।
अतीत में भारत के दक्षिण- पूर्व हिस्से में हाथियों के लिए खाना और पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था। इन्हीं कारणों से लोग इन क्षेत्रों में बसने लगे और जंगलों को काट हाथियों को बाहर खदेड़ वनभूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित करने लगे। अब भारतीय हाथियों का इलाका सीमित रह गया है।
हाथियों की कुल माता का ज्ञान बड़ा स्त्रोत है। जिसने अपने बड़ों से सीखा के झुंड को खाने के लिए हर मौसम में कहां ले जाना चाहिए। जिन वनों व रास्तों से हाथी आदि काल से गुजरते आए हैं वे अब कटकर कृषि खेत बन गए हैं। खेतों में होने वाली गन्ने, धान व खाद्यान्न की उपज हाथियों को बहुत पसंद है। अतः रात में वे इन खेतों में बहुत नुकसान पहुंचाते हैं।
फसल बचाने के लिए किसान टीन कनस्तर बजा तथा शोर मचा कर, हाथियों को भगाने की कोशिश करते हैं। हाथियों पर पत्थर व पेट्रोल बम फेंकते हैं। उन पर कट्टो से गोलियां चला देते हैं। उसको जहर देकर मारा जाता है। हाथी अब खुद मिजाज बन गए हैं। और अपना अस्तित्व बचाने के लिए प्रतिवर्ष 200 से अधिक लोगों की जान ले लेते हैं। कभी कभी जंगली हाथी गांव में आकर महुआ और शराब की तलाश में घरों में अपनी सूंड घुसाते फिरते हैं। हाथी के झुंड मौसमी है होते हैं और आवागमन करते हुए मानव अधिवास इलाकों में पहुंच जाते हैं, इसलिए एक गलियारे बनाए रखने तथा कुछ क्षेत्रों को मूलत: हाथियों के लिए प्रतिबंधित करने की जरूरत है।

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