एक पेड़ मां के नाम बनाम पूरा जंगल कॉरपोरेट के हाथ -महासचिव तेजराम विद्रोही, हसदेव अरण्य के करीब दस लाख पेड़ों की कटाई से पड़ेगा गंभीर दुस्प्रभाव
एक पेड़ मां के नाम बनाम पूरा जंगल कॉरपोरेट के हाथ -महासचिव तेजराम विद्रोही, हसदेव अरण्य के करीब दस लाख पेड़ों की कटाई से पड़ेगा गंभीर दुस्प्रभाव
राजिम : भारतीय किसान यूनियन, छत्तीसगढ़ के महासचिव तेजराम विद्रोही ने कहा कि भारत में 11 सितम्बर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस मनाया जाता है. यह उन लोगों को याद करने और सम्मान देने का दिन है. जिन्होंने जंगलों और वन्यजीवों की रक्षा के लिए अपनी जान गंवाई. यह दिवस मनाने का खास वजह है जब 11 सितम्बर 1730 को राजस्थान के महाराजा अभयसिंह ने महल बनाने के लिए ’केजरली नामक वृक्षों को काटने का आदेश दिया था. ये पेड़ पारंपरिक रुप से बिशनोई समुदाय द्वारा पूजे जाते थे. इस आदेश का विरोध करते हुए बिशनोई समुदाय के करीब 350 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी. इस घटना को खेजड़ली नरसंहार के नाम से जाना जाता है. क्या आज भी वनों को बचाने वालों का नरसंहार हो रही है? आज के संदर्भ में इसकी समीक्षा जरुरी है.
केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए हर साल मानसून के दौरान बड़े पैमाने पर वृक्षारोपन का काम किया जाता है. अगर हकीकत में ईमानदारी और दृढ़ इच्छाशक्ति से किया जाता तो विशाल मानव निर्मित जंगल तैयार हो जाता. लेकिन विडंबना ही कहा जाए कि जब भी सरकार वृक्षारोपन और पर्यावरण संरक्षण की थीम तैयार करती है. तब प्रकृति निर्मित सघन जंगलों का विनाश दूसरे दरवाजे से चालू हो जाता है. इस बार इस पर बात करना ज्यादा जरुरी और भी हो जाता है क्योंकि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साल 2024 में पर्यावरण संरक्षण के लिए ’’एक पेड़ मां के नाम’’ थीम के आधार पर वृक्षारोपण करने का संदेश पूरे देशवासियों को दिया है.
हम छत्तीसगढ़ राज्य की बात करते हैं. जहां तत्कालीन भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रमनसिंह द्वारा साल 2012 में मध्य भारत का अमेजन कहे जाने वाले हसदेव अरण्य की करीब तीन लाख पेड़ों की कटाई की. अनुमति इसलिए दे दी गई थी कि देश का सबसे बड़ा कॉरपोरेट अडाणी वहां से कोयला निकाल सके. सरकार के इस फैसले का हसदेव अरण्य के क्षेत्रवासियों और प्रकृति प्रेमियों द्वारा कड़ा विरोध किया गया और आज भी विरोध जारी है. इस बीच पांच साल कांग्रेस पार्टी की भी सरकार में रही लेकिन जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण बचाने जनता की आन्दोलन को दबाया गया.
आन्दोलनकारियों और प्रकृति प्रेमियों का मानना है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारें पेड़ों की अंधा-धूंध कटाई के लिए जिम्मेदार है. हालांकि 26 जुलाई 2022 को कांग्रेस सरकार ने हसदेव क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था. लेकिन 2023 में फिर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने पर 22 दिसम्बर 2023 को अकूत कोयला खनन के लिए अनुमति दे दी गई.
अनुमान है कि हसदेव में राजस्थान और अडाणी को आबंटित कोल ब्लॉक के लिए हसदेव अरण्य के करीब दस लाख पेड़ों की कटाई किया जाना है. जिसकी शुरुआत 29 अगस्त 2024 से हो चुकी है.
गौरतलब है कि करीब 170,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हसदेव अरण्य मध्य भारत में बहुत घने जंगलों के सबसे बड़े सन्निहित क्षेत्रों में से एक है. छत्तीसगढ़ की फेफड़ा कहे जाने वाले ये जंगल जैव विविधता से समृध्द है. और छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी नदी हसदेव और मिनीमाता बांगों बांध के केचमेंट है जिससे करीब चार लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित होती है. भारतीय वन्य जीव संस्थान ने संपूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश करते हुए कहा है कि अगर खनन की अनुमति दी गई तो मानव -हाथी संघर्ष विकराल रुप ले लेगी पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर दुस्प्रभाव पड़ेगा.
जुलाई 2016 में ’’हरियर छत्तीसगढ़’’ के तहत् बड़े पैमाने पर वृक्षारोपन अभियान चलाया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने हर नागरिक से हर साल कम से कम एक पौधा लगाने और उसके पेड़ बनने तक नियमित देखभाल करने की अपील किया था. उन्होंने कहा था कि वृक्षों से ही पृथ्वी और हमारे जीवन का अस्तित्व है. वृक्षों के बिना दुनिया में जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. तब भी उन्होने हसदेव अरण्य में कोयला उत्खनन के लिए की जा रही पेड़ों की कटाई पर रोक नहीं लगाया. वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ भाजपा सरकार द्वारा हसदेव अरण्य में 29 अगस्त 2024 को पुनः जंगल की कटाई कराना पेशा कानून का घोर उल्लंघन है साथ ही 2022 को छत्तीसगढ़ विधानसभा में पारित प्रस्ताव की अवहेलना और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के थीम ’’एक पेड़ मां के नाम’’ का अपमान है. यह कहना गलत नहीं होगा कि एक पेड़ मां के नाम पर वृक्षारोपन करो और पूरा जंगल कॉरपोरेट के हाथ सौंप दो। अब भी वक्त है जल, जंगल, जमीन, पारिस्थितिकी तंत्र को बचाया जाए नही तो कॉरपोरेट हीतों के मुनाफे के लिए किया जाने वाला विकास महाविनाश का कारण बनने में समय नहीं लगेगा.